Saturday, August 20, 2011

धरती की पुकार



तपती धरती कहती अंबर के
कानों में बन पपीहे की पुकार।
पीहू पीहू ओ प्रियतम मेरे! बरसाओ अमृत रसधार।
सुनकर धरा की करुण पुकार
घिर आए श्यामल मेघ गगन में, बाहें फैलाए
क्षितिज के पार।
उमड़ घुमड़ घनघोर, मचाकर रौरव शोर
बरसाकर बूँदों की रिमझिम फुहार।
अंबर नटखट दूर क्षितिज से,
निहारे प्रिया को बारम्बार।
जल बूँदों के स्पर्श से सिहर उठी यों वसुधा।
पुलकित तन, नवअंकुरित हरित तृण
रोमावलि से उठे लहलहा।
फिर बह चली सुगंधित मंद बयार
तो धरा का रक्तिम किसलय अंचल लहराया।
धानी चूनर ओढ़कर क्यों चंचल मन फिर से मुसकाया?
झील की नीली आँखों से,
एकटक निहार प्रियतम अंबर को
दूर गगन में मेघ देख क्यों व्याकुल मन फिर शरमाया?
सद्यस्नाता धरा ने ली, तृप्ति भरी इक गहरी साँस।
महक उठी हवा भी कुछ,
कुसुमित हुआ जीवन प्रभात
सुरभित हुई दिशाएँ भी और
पल्लवित नवजीवन की आस।

Saturday, August 13, 2011

रक्षाबन्धन के हाइकु (हाइकु)


कमला निखुर्पा
1
अक्षत भाई
रोली बनी बहना
घर-मंदिर ।
2
राखी के धागे
ले उड़ती फिरी है
प्यारी बहना।
3
बावरी घटा
रस बरसाए है
भीगे बहना।
4
भरी अँखियाँ
छ्लकता जाए है
नैनों से नेह ।
5
भाई का नेह
बिन बदरा के ही
बरसा मेह
6
जेठ की धूप
शीतल पुरवाई
मेरा ये भाई।
7
नैनों की सीपी
चम चम चमके
नेह का मोती।
8
बंद मुठ्ठी में
घरौंदे की मिट्टी सी
भाई की चिट्ठी।
9
तेरा चेहरा
नभ में चमके ज्यों
भोर का तारा।
10
आई हिचकी
अभी अभी भाई ने
ज्यों चोटी खींची।
11
मेरा सपना
हँसे मुसकराए
भाई अपना।
12
है अभिलाषा
हर जनम मिले
भाई तुमसा।
13
मन -भँवरा
जीवन की बगिया
गुंजन गाए।
14
मैं रहू कहीं
तुमसे मेरी पीर
ना जाए सही।
15
 तेरे आशीष
फूल बन बरसे
भरा दामन।
16
नेह बंधन
ज्यों मन गगन में
चंदा रोशन ।
17
तेरी दुआएँ
जीवन मरुथल में
ठंडी  हवा
एँ
-0-
मेरे हाइकु यहाँ भी पढ़िएगा -कमला निखुर्पा