Wednesday, August 12, 2015

बाल कविता 


बोल रे बादल, बादल  बोल।
तुम गरजो तो नाचे मोर 
हम गरजें तो मचता शोर
टीचरजी हम पर गुर्राती 
जाने क्यों वो समझ ना पाती।
खुल जाती हम सबकी पोल ।
बोल रे  बादल, बादल बोल।

करें  गुदगुदी नटखट बूंदें
छप छपा छप कूदा-फांदी 
धप से फिसला मोटू हाथी  
बड़े मजे का है ये खेल 
क्यों खिड़की से झांके चुन्नू ?
बाहर आ  दरवाजा खोल।
बोल रे बादल बादल बोल।

ये तेरी नाव वो मेरी नाव
बिन माँझी पतवार के भी
बढ़ चली रे अपनी नाव 
कागज की नैया मुन्नू खिवैया 
सब चिल्लाएं हैय्या हो हैय्या 
है इन खुशियों का है कोई मोल ?
बोल रे बादल बादल बोल।



                    कमला निखुर्पा