मॉर्निग वॉक
सुबह सुबह ताजी हवा के झकोरों से बात करते हुए मैं
हरे-भरे घास के मैदान से मिलने जा रही थी | सड़क के दोनों तरफ अमलतास और गुलमोहरों ने कलियाँ बिखेरकर
रंग-बिरंगा कालीन बुना था | पंछियों की चहचहाती चुहल अलसाई भोर को
झकझोर रही थी | सड़क पर मॉर्निग वॉक करने वालों की चहलकदमी
शुरू हो गई है |
वो देखो ... कमर में मोटा सा पट्टा बंधे
बूढी दादी हाथ में पॉलीथिन लेकर चल रही है , थोड़ी देर में दादी की
पॉलीथिन आम, जामुन और पूजा के फूलों से भर
जाएगी | जब तक आम, जामुन का सीजन रहेगा, दादी के हाथ में थैला रहेगा |
वो सामने से हरियाणा वाली दीदी आ रही हैं ... हाथ में
प्लास्टर बंधा है पर मॉर्निग वॉक तो जरूरी है जी | पता है हाथ में प्लास्टर
क्यों बंधा है? दरअसल ये भी जामुन चुनने के लिए भागी-भागी
जा रहीं थी, अचानक ठोकर लगी और धड़ाम ... ४५ दिनों के
लिए हाथ बेचारा बंधन में बंध गया| अब वो कहती फिरती हैं “बहनजी लालच बुरी बला है |“
कोई धीरे धीरे कदम घिसटता हुआ चल रहा है, कोई इतनी तेजी से लंबे-लंबे डग भर रही है, लगता है उसकी बस छूटने वाली है , ये देखो ये आ रहे हैं खिलाडी महाशय, ट्रैक सूट में सजे, स्पोर्ट्स शूज बाँधे
दौड़-दौड़ कर हलकान हुए जा रहे हैं |
मेरे कदम इन सबको देख कभी तेज तो कभी धीमे
हो जाते हैं और मेरी आँखें ऊंची फुनगियों में चिरिया
रानी को खोजती रहती हैं | रंग-बिरंगी चिरैया , कभी चंचल , कभी डरपोक चिरैया ... चहककर मिठास घोलती
चिरैया ... नन्हे पंख पसार आसमान को छूती चिरैया | काश मैं भी एक चिरैया होती
..
पागल मन
छूना चाहे संसार
पंख पसार |