रस की गंगा बहती
कल कल ,
शब्दों के अनगिन दीप जले|
भाव-लहरिया उठती गिरती
जब छंद-घंटिका मधुर बजे |
आओ इंडिया वालो
अब भारत के रंग में रंग जाएँ
आओ अपनी भाषा
के गीत मधुर मिलकर गाएं |
हो वेद मन्त्रों
से भोर सुहानी
मन में गीता
का ज्ञान बसे |
ममता की माखन
रोटी पा
हर बालक कान्हा
बन जाए|
आओ इंडिया वालो
फिर बंशी की धुन सुन मुसकाएँ
आओ अपनी भाषा
के गीत मधुर मिलकर गाएं |
आओ ओढ़ें कबीरा की चादर,
मंदिर मस्जिद
के भेद भुलाएं|
रसखान के गिरिधर
नागर संग
मीरा के मन की
पीर हरें|
हम पावन गंगा
तट वासी, क्यों सागर से अपनी प्यास बुझाएं,
अपनी भाषा के
परचम को लहरा, पुनः विश्वगुरु कहलाएं |
आओ अपनी भाषा
के गीत मधुर मिलकर गाएं |
आओ इंडिया वालो
अब भारत के रंग में रंग जाएँ |
कमला निखुर्पा