
जनता हर रोज
जागी है अब,
ले रही अंगडाई |
बचना रे भाई |
टोपी सजेगी ,
सर माथे रखेगी ,
ईमानदारों के |
भ्रष्टों के गले होगी ,
जूतों की लड़ी |

तन को मिले वस्त्र |
सर को छत,
मिल जाए जो सबको ,
फिर क्यों उठे शस्त्र ?
और अंत में ......जनता जनार्दन ! ये जान लीजिए-
ई राजनीति
का होत है बबुआ ?
किच्छौ नाही रे ...
ई पइसा का खेला
चार दिन का मेला |