युग-चेतना
कमला निखरूपा ..... 'हृदय की अनुभूतियों की संगम स्थली '
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Wednesday, September 3, 2014
आज उदास है मन ..
बीता दिवस
बरस मास बीते
खुशियाँ रीती |
रस की नदी
बही थी कलकल
सूखने चली |
एकाकी मन
बुनता ही रहता
मीठे सपन |
किससे कहें ?
कसक मनवा की
दूर अपने |
कहाँ जा छुपी ?
अभी-
अभी थी यहीं
पगली हँसी |
रोके ना रुकी
बरसी बह चली
सावनी झड़ी |
कमला
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