Monday, December 10, 2012

बूँदों की व्यथा


कमला निखुर्पा
(प्राचार्या केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक-2 ,कृभको सूरत )
सपनीली आँखों में छुपी थी कुछ नन्हीं बूँदें,
पलकों के किवाड़ की ओट से झाँकती नन्हीं बूँदें।
उमड़ा भावों का कुछ ऐसा ज्वार
बूँदें बहने को बेकरार ।
पर दहलीज पे ठिठक गए कदम
क्योंकि-
सामने राह रोके खड़ी थी, नाक की ऊँची दीवार,
देती चेतावनी बार-बार,
देखो बाहर ना निकलना,
नहीं तो-
वापस घर में घुसने ना पाओगी।
जो कहीं बाहर निकल गयीं तुम तो,
धूल में मिल जाओगी।
फ़िर कभी नजर ना आओगी।

देख बूँदों की व्यथा
कुछ कहने को होंठ कसमसाए,
मगर कुछ भी कह ना पाए।
क्योंकि-
सामने राह रोके खड़ी थी, हाथ की चौड़ी हथेली,
करती होशियार!! खबरदार!!
भावों में कभी ना बहना,
चिकने गालों पे कभी ना फिसलना।
वर्ना इस तरह पोंछ दी जाओगी
फ़िर कभी नजर ना आओगी।

देख बूँदों के ठिठके कदम
भरी आंखों ने भारी मन से,
बंद कर दिए पलकों के किवाड़,

बूँदें बह ना सकीं
कुछ भी कह ना सकीं……………।
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