मनाऊँ मैं कैसे नया साल
फिर आया ३१ दिसंबर , मनाऊँ
मैं कैसे नया साल ?
चिथड़ा ओढ़े काँप रही |
नन्ही सी हथेली फैलाकर,
वो जाने क्या कुछ माँग रही |
भूखी प्यासी और वीरान,
आँखों में उसके कई सवाल |
मनाऊँ मैं कैसे नया साल?
वो सुबह-सवेरे घर से निकला है,
झुण्ड में चल रहा पर अकेला है|
पढ़ने-लिखने की उम्र में,
हाथों में लिए एक तसला है |
स्कूली बच्चों की किलकारी
सुन, क्यों धीमी पड़ गई उसकी चाल?
मनाऊँ मैं कैसे नया साल?
कितना कुछ खुद से बोल रहा |
झिड़कियां सुन, पत्थर खाकर भी,
फिर-फिर करता किल्लोल रहा|
क्यों लहूलुहान हुई संवेदना,
क्यों मानवता घायल बेहाल ?
मनाऊँ मैं कैसे नया साल?
कहीं बम के धमाके गूंज रहे ,
कहीं अस्मत हो रही तार-तार|
कहीं कोखें सूनी हुई माँओं की ,
कहीं सजा भ्रष्टों का बाज़ार|
सबकुछ भुला कैसे नाचूँ
गाऊं, कैसे मिटे मन का मलाल |
मनाऊँ मैं कैसे नया साल?
आओ लगाएँ घावों पे मरहम
आँसू पोछें मुस्कान खिलाएँ |
सर्द हो रहे रिश्तों को आँच दें,
अपनेपन का अलाव जलाएँ |
मिलजुलकर हमतुम संग चलें तो,
होगा भावी साल खुशहाल |
तब हंस गाकर खुशियाँ
बांटकर, फिर-फिर मनाएँ नया साल |
कमला निखुर्पा