Wednesday, January 11, 2012

दर्द की भाषा

हाइकु 


98
दर्द की भाषा
मन की ये हताशा
आंसू ही बांचे |


99
मन में चुभी
व्यंग्य वाणों की कील
घाव ना भरें |

100
शब्द हैं चुप  
भीगी पलकें कहे
मन की पीर |
101
चूनर भीगी
भीगे नैन बावरे
मन है  प्यासा !


102
जोडने चली 
खुद टूट गई वो
औरत जो थी |

103
पहाड  बना
अहम पुरुष का
नारी तू  राई ?

1 comment:

सहज साहित्य said...

उदासी के सन्ताप को शब्दों के मोतियों से सजा दिया है। गहन अनुभूति मन के तारों को झंकृत कर देती है।कमला निखुर्पा लिखती नहीं लेखन को जीती हैं। भाव और भाषा मिलकर रसोद्रेक में पूर्णतया सहायक हैं।
चूनर भीगी
भीगे नैन बावरे
मन है प्यासा !
शब्द हैं चुप
भीगी पलकें कहे
मन की पीर |
-ये हाइकु उच्च्कोटि के काव्य का नमूना है।
बहुत बधाई