मेरे प्यारे भैया को समर्पित...(जिन्होंने मुझे हाइकु लेखन के लिए प्रेरित किया ).
गागर छोटी
भरूं मैं तो सागर
हाइकु हो ना ?
महक उठा
मोरा माटी सा तन
फुहार हो क्या ?
तिरती जाऊं
ज्यों लहरों पे नैया
खिवैया हो क्या ?
कुछ यूँ लगा
उमंगित है मन
त्यौहार हो क्या ?
जो भी हो तुम
हो जन्मों के मीत
कह भी दो हाँ
गागर छोटी
भरूं मैं तो सागर
हाइकु हो ना ?
बहती जाए
नयनों से नदियाँ
सागर हो क्या ?
महक उठा
मोरा माटी सा तन
फुहार हो क्या ?
डूब चली मैं
नेह ज्वार उमडा
चन्दा हो क्या ?
तिरती जाऊं
ज्यों लहरों पे नैया
खिवैया हो क्या ?
तुमने छुआ
क्या से क्या बन चली
पारस हो क्या ?
कुछ यूँ लगा
उमंगित है मन
त्यौहार हो क्या ?
कौन हो तुम ?
कितने रंग तेरे
चितेरे हो क्या ?
जो भी हो तुम
हो जन्मों के मीत
कह भी दो हाँ
मैं नहीं बोली
बोल पडी कविता
छंद ही हो ना ?
2 comments:
मैं अपनी इस बहन की भावप्रवणता को सदा नमन करता रहा हूँ । इसकी लेखनी रस की फुहार बरसाता है । हाइकु को नया स्वरूप देने में इनका योगदान अनुकरणीय है ।
हाइकु का एक नया अंदाज़ पढ़ने को मिला | तो दिल लुभावने हैं हाइकु ........नया अंदाज़ और भी लुभाता है |
बहुत ही सुन्दर प्रयास !
आपका पहला हाइकु जो बहुत सुन्दर लिबास पहने हुए है उसको सजाने के लिए यह शब्दी झालर कैसी रहेगी ..............?
नन्ही सी सीपी
करोड़ों भाव मोती
हाइकु हूँ ना
बहुत बधाई !
हरदीप
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