Sunday, July 7, 2013

भीगे हाइकु

भरी भरी थी 
बदरा की अँखियाँ 
बही नदियाँ |

छप से गिरी 
चपला गगन से 
टूटी बिखरी |

छलक उठा 
सरवर का जाम 
नशीली धरा |

इक कोंपल 
नन्हीं सी  दो  कलियाँ 
उगा हाइकु |

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुंदर हाइकु

सहज साहित्य said...

बहुत भावपूर्ण हाइकु कमला बहन।