अलसाई भोर
आतिशी दोपहर
साँझ निर्झर।
अंबर पीत
सूरज सुनहरा
मन क्यों डरा?
साँझ निर्झर।
अंबर पीत
सूरज सुनहरा
मन क्यों डरा?
गर्मी केगीत
धूल नाचती फ़िरे
चौराहों पर।
धूल नाचती फ़िरे
चौराहों पर।
चिड़ियाहांफे
सूखे
तिनके से ही
सिर हैढाँपे।
सिर हैढाँपे।
बैरी सूरज
दिन भर जलाए
मन न भाए |
जलती धरा
गुस्साया है सूरज
बरसी आग |
प्यारी लागे
चाँद तारों से सजी
सांझ सुहानी |
चुप है तरु
अलसाई डालियाँ
सोई है हवा |
सूखी नदियाँ
इक बूंद को तरसी
प्यासी अँखियाँ |
सूखा है सुख
सूखने नहीं
देना
आँखों का पानी
नाच मयूरी
तेरे नाचने से ही
घिरे बदरी |
बुझती नहीं
जनम जनम की
पपीहा प्यास |
मन मटकी
भरे जो जतन से
बुझे है प्यास |
No comments:
Post a Comment