Wednesday, June 29, 2016

                     रोबोटिक मशीन
कमला निखरूपा 


मेल के सागर में
डूबते-उतराते
रिप्लाई और अप्लाई  के चप्पू चलाते-चलाते
डेडलाइन की लहरों के संग बहते-बहते
मँझधार में पहुँचे तो देखा
शिक्षा की जिस कश्ती पे सवार हुए थे गर्व से
वो तो कब की डूब चुकी

भागते समय के साथ-साथ
हम भी रेस लगाने चले थे
बदलते युग के दौर में 
हम भी बदलने चले थे

यूँ लगने लगा कि बहुत जल्दी,  हम जहीन बन गए हैं
कविता को मार कर दिल में , रोबोटिक मशीन बन गए हैं

अब हम हैं
फाइलें हैं
इम्पोर्टेंट लेटर हैं
अर्जेंट मैटर हैं
एक्शन टेकन रिपोर्ट है
कार्यशालाएं है
ढेर सारे पोर्टल हैं
लॉग इन है
लॉग आउट है
वेरीफिकेशन है
नोटिफिकेशन है
डेमो है
मेमो है


कुछ नहीं है तो
बस थोड़ा सा समय ...

हाँ नहीं है समय ..
उस नन्हे से विद्यार्थी की
आँखों में झाँककर
मुस्कराने का

 जो जाने कब से हमें
 गुड मॉर्निंग मैडम या सर कहना चाहता है

जो अपने नन्हे हाथों से बनाए रंगीन कार्ड को
हमें देना चाहता है ...

                                        28 जून 2016

5 comments:

Anonymous said...

बहुत ही सुन्दर शब्दों में भावों को प्रस्तुत किया है आपने ।

Anonymous said...

बहुत ही सुन्दर शब्दों में भावों को प्रस्तुत किया है आपने ।

Dr. Vinita said...

Awsome...

सहज साहित्य said...

सच्ची कविता ! प्रशासन मशीन है ,हम जिसके पुर्ज़ेभर बनकर रह जाते हैं। मन में कितना नेह -ज्वार है , न कोई देख पाता है , न हम दिखा पाते हैं । हार्दिक बधाई अनुजा !! रामेश्वर कम्बोज 'हिमांशु'

Kamlanikhurpa@gmail.com said...

आभार भैया .. और सभी सुधीजनों का मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए |