निशा समेटे
तारों
भरी चूनर
लो उषा
आई ....
उषा के गाल
शर्म से
हुए लाल
सूरज
आया ...
आया सूरज
किरणें
इतराई
खिले
कमल ...
खिले कमल
महकी
यूँ फ़िजा
भँवर
जागा ....
जागे भँवर
गुन्जारे
गुनगुन
तितली
नाची ....
ता थई
ता थई ता
हँसी
दिशाएँ....
हँसी दिशाएँ
गगन
भी मगन
बावली
धरा ....
बावली धरा
ओढ़े
धानी चूनर
गाए रे
पंछी ...
गाए रे पंछी
गीत
मनभावन
झूमे
रे मन ...
4 comments:
प्रिय कमला जी ,
सभी हाइकु एक से बढ़कर एक हैं ..........भावपूर्ण .............बिल्कुल नया अंदाज .............पहले हाइकु से दूसरा ........भावों को आगे लेकर जाता हुआ हर एक हाइकु ............
खिले कमल
महकी यूँ फ़िजा
भँवर जागा ....
जागे भँवर
गुन्जारे गुनगुन
तितली नाची ....
इस नए अंदाज में हाइकु को जोड़कर ऐसे पेश किया कि हर हाइकु अपने आप में सम्पूर्ण भी है और बात को आगे भी ले जा रहा है !
बहुत बधाई !
हरदीप
धन्यवाद हरदीपजी, आपको हाइकु पसंद आए ...
कमला जी आप जब प्रकृति पर लिखती हैं , लगता कैनवास पर रंग भ्र रही हैं। सारे हाइकु बहुत प्यारे हैं, लेकिन ये बहुत प्यारे हैं-
नाचे तितली
ता थई ता थई ता
हँसी दिशाएँ....
हँसी दिशाएँ
गगन भी मगन
बावली धरा ....
बावली धरा
ओढ़े धानी चूनर
गाए रे पंछी .
प्रातःकालीन सौंदर्य का अद्वितीय चित्रण!
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