‘ई’ जन्मदिन (E-Birthday)
दिल की गहराइयों से सभी मित्रों और प्यारे विद्यार्थियों का धन्यवाद जिन्होंने
सैकड़ों सन्देश भेजकर ( माफी चाहती हूँ कि आप लोग वाल पर
नहीं लिख पा रहे हैं ) मुझे याद दिलाया कि मेरा जन्मदिन है ..सच रोजमर्रा की भाग दौड़ में, कब जिंदगी चुपके से निकल जाती है पता ही नहीं चलता ...कल का पूरा दिन यानि
मेरा जन्मदिन ३० पृष्ठों का रिपोर्ट बनाने में गुजर गया |
मुझे बहुत याद आ रही है मेरी दादी की जो मेरे जन्मदिन पर सुबह - सुबह मुझे
मंदिर ले जाती थी .. नहाधोकर वो नई फ्राक पहनना ...वो पूजा की थाल सजाना ... बगीचे
में घूम-घूमकर सबसे सुन्दर खिले हुए फूल
चुनना ..दौड़ते हुए दो किलोमीटर पैदल चढ़ाई चढ़ माता नंदादेवी के मंदिर जाना ...
.पहाड़ी के ऊपर चीड के पेड़ों के बीच बना छोटा सा मंदिर .. मंदिर के चारों ओर लटकती ढेर सारी घंटियाँ, भक्तों की मनोकामना पूरी होने का
प्रतीक थी| मंदिर परिसर की साफसफाई कर हम दोनों धूप दीपक जलाते थे| उस वीराने में
जंगल के बीच बने मंदिर में दिप दिपकर जलता दीपक और धूप का धुंआ मंदिर को और
रहस्यमय बना देता था| मैं दादी के पीछे खडी-खडी सोचती थी क्या इस पत्थर के अन्दर
भगवान् होंगे ? क्या वो मुझे देख रहे होंगे ?
मेरी दादी, देवी की मूरत के सामने आंखे बंदकर मन ही मन जाने
क्या-क्या बोलती रहती थी ... मैं चुपके से उनके मुंह के पास अपने कान लगा सुनने की
कोशिश करती पर कुछ समझ में नहीं आता था| हारकर मैं मंदिर की परिक्रमा करते हुए सारी
घंटियाँ बजा-बजा कर सुनती थी ... ये छोटी वाली
घंटी इसकी कितनी प्यारी आवाज ...टिनटिन और ये बड़ा सा घंटा कितना ऊपर लटका है ... उछल उछलकर जोर लगाकर उसे बजाकर ही दम लेती .. उफ़ कितना घमंडी
है ये घंटा |
तभी पीले पंखों वाली तितली मेरे
आगे-पीछे उड़ने लगती है .. बस फिर क्या था
तितली आगे-आगे और मैं पीछे-पीछे ... जैसे ही पकड़ने की कोशिश करती वो फुर्र से उड़
जाती कभी झाड़ी में ... कभी चट्टान के ऊपर
.. तभी दादी की पुकार सुनकर आसपास देखा तो पता चला कि तितली के साथ मैं मंदिर से
बहुत दूर आ गयी हूँ |
मंदिर से वापस जाते हुए मैं दादी से बार बार पूछती हूँ .. अम्मा, आज तू मेरे
लिए क्या बनाएगी ?
दादी हंसकर कहती – हलवा पूरी और आलू के गुटके |
मैं आज पूरा दिन खेलूंगी , मेरी गुडिया का डब्बा मुझे दे देना ..|
हाँ हाँ दे दूंगी, पहले घर चलकर मेरी मदद तो कर|
अम्मा, तुम मेरी गुडिया को मत छुपाया करो और हाँ मेरी गुडिया को भी नये कपड़े
चाहिए , दोगी ना ??
मेरी अम्मा ...(लोग कहते थे कि वो
सौतेली है उसकी अपनी कोई संतान नहीं) पर मेरे लिए वो सबसे प्यारी , दुनिया से
निराली .. उसकी आँखों में ममता का समन्दर लहराता था ..उसकी गोद में बादलों की कोमलता थी ..उसकी बातों में परियों की कहानियाँ थी ..
जिसका प्यार भरा स्पर्श मैं आज भी महसूस करती हूँ
और पार आकर जाती हूँ हर बाधा को |
घर के कोने वाले कमरे में एक छोटा
सा मंदिर .. जिसमें ढेर सारे देवी देवताओं की तस्वीरें हैं . बहुत सुन्दर सजाया
गया है . सबसे पहले हलवा पूरी भगवानजी के सामने
चढ़ाया गया .. मुझे भी चौकी में बिठाकर अक्षत रोली-टीका लगाकर अम्मा ने मुझे
फूलों की माला पहना दी .. वहां उपस्थित सभी लोग हंसने लगे .. मैंने सबके पैर छुए
और आशीर्वाद लिया |
खाना खाते-खाते मैंने देखा कि चाचाजी मेरा बस्ता निकाल रहे हैं ...
नहीं ....आज मैं नहीं पढूंगी ..
बस गणित के चार सवाल कर ले बेटा ,, फिर छुट्टी ..
खाना आधा छोड़कर मैं भाग गयी बगीचे में .. जहाँ आम ..अमरूद, केला, लीची के पेड़
अपनी डाले फैलाए मेरी राह देख रहे थे ..
जहाँ नर्म घास पर खिले जंगली फूल मुझे बुला रहे थे .. जहाँ रंग बिरंगी चिड़िया कब
से चहचहाकर मुझे पुकार रही थी |
काश जिन्दगी में भी Crtl + Z का विकल्प होता तो कितना अच्छा होता.....
कमला निखुर्पा
गुजरात
2 comments:
लम्बे अरसे के बाद यहाँ पर आई. हर दिन जन्मदिन इसलिए इतने दिनों बाद भी जन्मदिन के लिए अशेष बधाई. बहुत उम्दा लिखा है आपने. सच में ज़िंदगी ऐसी उलझा देती है की खुद को भी हम भूल जाते हैं. शुभकामनाएँ!
बहना जब तू ( प्राचार्या हो 'तू' शब्द से नाराज़ न होना)लिखती है तो एक -एक शब्द मेरी आँखों के आगे जीवन्त हो जाता है। जितना सच्चा और सुच्चा तेरा मन , वैसा ही तेरा लेखन ।तू सदा खुश रहे मन की मासूम मेरी गुड़िया -सी प्यारी । तेरे पास कभी किसी दुख की छाया न आए । अब घण्टी बजा नहीं पाती , बजवाती है कि चलो अब हुई छुट्टी । बस ऐसे ही शब्दों के मोती बिखेरर्ती रहना
Post a Comment