Saturday, August 30, 2014

जनकनंदिनी सीता



i-जनकनंदिनी सीता
क्यों दी तुमने अग्नि परीक्षा?
कि युगों बाद आज भी
यही परंपरा निभाई जा रही,
पहले चिता को सजाकर सीता
सती बनाई जाती रही,
और अब
दहेज के लिए रोज
कई सीताएँ जलाई जा रहीं।

ii-मैथिली

मिथिला की राजकुमारी तुम!
क्यों सहे तुमने कष्ट वनवास के
क्यों वर्षों तक वन में
नंगे पांव कांटों पर चलती रही तुम?
कि हर युग में हर कदम पर
नारी को काँटों का उपहार ही मिला।
अपने घर पर रहकर भी
उसने केवल वनवास ही जिया।

iii-वैदेही

तुम्हें नहीं मालूम?
बदल चुकी है अब 
देह की परिभाशा
घुट-घुटकर घर में रोती हैं
आज अनुसूयाअहिल्या
सभ्यता के रुपहले पर्दे पर
नग्न नृत्य करतीं हैं
शूर्पनखा और ताड़का।

iv-जगत्- जननी सीता

क्यों दी तुमने अग्नि परीक्षा?
कि वासना के विमान पर सवार होकर
दसों दिशाओं से दशानन
अट्टहास कर रहा है।
हर घर में सीता के लिए
अविश्वासअसुरक्षा का अग्निकुंड सजा रहा है।

v-जानकी

जने थे तुमने वीर पुत्र,
वीर प्रसू थी तुम
फिर भी नहीं रोक पाए वे
धरती के गर्भ में समाती
अपनी जननी को
तभी तो आज भी
यही परंपरा निभाई जा रही है।
नन्हीं अजन्मी सीताएँ,
माँ की कोख से छीनकर
धरती के गर्भ में दफनाई जा रहीं हैं।
युगों युगों से क्यों यही
परंपरा निभाई जा रही है।
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