मुझे यात्राएं बहुत पसंद है smile emoticon मेरा बस चले तो धरती और आसमान का हर कोना घूम लूँ .. प्रकृति के हर उपादान को जी भर निहारूं .. चलती रहूँ चलती रहूँ .. सफ़र कभी खत्म न हो ..ऐसे ही एक यात्रा के दौरान मैं शायद २००८ में ...कोटा से भीलवाडा जा रही थी | भीडभाड .. यात्रियों से खचाखच भरी बस में चढ़ी ...कहीं तिल रखने की जगह नहीं थी | सीट की तलाश में आँखे इधर-उधर कुछ ढूँढ़ रही थी | हर सीट पे यात्री विराजमान थे .. कोई बड़ी बड़ी पगड़ी वाले .. कोई रंग बिरंगी गोटे किनारे वाली चूनर ओढ़े ... कोई घूँघट में छिपी थी तो कोई माथे का बड़ा सा बोरला (मांग टीका ) चमकाते हुए बतियाने में मस्त... ब्रेक लगते तो धक्का भी लगता .. गिरने ही वाली थी कि बड़ी-बड़ी मूंछों वाले एक रंगीन पगडीधारी बुजुर्ग किसान ने मुझे संभाल लिया | अपनी सीट से उठकर बोला "आ बेटी तू ऐठे बैठ जा " | आँखों से ही उसे धन्यवाद देकर मैं बस की खिडकी से बाहर का दृश्य देखने लगी | तेजी से भागते पेड़ , हरे भरे लहलहाते खेत खलिहान , मैदान में चरते ढोर डंगर... बस में बैठे-बैठे बदलते नजारों के बीच में मैं खो सी गई .. और अपनी मन की डायरी पे कुछ लिखने लगी ...कुछ कच्ची सी अनगढ़ रचना जिसे आदरणीय काम्बोज भैया और रचनाकार ई पत्रिका ने प्रकाशित किया था |आज अचानक नेट सर्फ़ करते हुए दिख गई ..
डोकरा जी को सलाम
-कमला निखुर्पा
रंग- रंगीली पगड़ी सिर पे
आँखों में लरजता प्यार है।
झुर्रियों से भरा चेहरा तेरा
कहता अनुभव अपार है।
तेरे उन्मुक्त हँसी के ठहाके
हर आँगन की शान है।
ये वृद्ध-बुजुर्ग नमन तुम्हें
तू भारत की शान है।
बडी–बडी नुकीली मूँछों में
छुपी मीठी मुसकान है।
बटुआ तेरा खाली–खाली सा
पर मन सोने की खान है।
ये वृद्ध बुजुर्ग नमन तुम्हें
तू भारत की शान है।
अनजाना है गाँव तेरा
लगता है मुझको अपना- सा।
ये लहराते हरे खेत
लगता है ये इक सपना –सा ।
मरुभूमि सिंचित तेरे पसीने से
तुझको मेरा प्रणाम है।
ये वृद्ध बुजुर्ग नमन तुम्हें
तू भारत की शान है।
शायद तुझमें ही छुपा हुआ
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान है।
तेरे गाँव की मिट्टी से ही
मेरा भारत महान है।
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डोकरा= बूढ़ा
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1 comment:
Nice poem
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