बाल कविता
बोल रे बादल, बादल बोल।
तुम गरजो तो नाचे मोर
हम गरजें तो मचता शोर
टीचरजी हम पर गुर्राती
जाने क्यों वो समझ ना पाती।
तुम गरजो तो नाचे मोर
हम गरजें तो मचता शोर
टीचरजी हम पर गुर्राती
जाने क्यों वो समझ ना पाती।
करें गुदगुदी नटखट बूंदें
छप छपा छप कूदा-फांदी
छप छपा छप कूदा-फांदी
धप से फिसला मोटू हाथी
बड़े मजे का है ये खेल
क्यों खिड़की से झांके चुन्नू ?
बाहर आ दरवाजा खोल।
बोल रे बादल बादल बोल।
बड़े मजे का है ये खेल
क्यों खिड़की से झांके चुन्नू ?
बाहर आ दरवाजा खोल।
बोल रे बादल बादल बोल।
ये तेरी नाव वो मेरी नाव
बिन माँझी पतवार के भी
बढ़ चली रे अपनी नाव
कागज की नैया मुन्नू खिवैया
सब चिल्लाएं हैय्या हो हैय्या
बिन माँझी पतवार के भी
बढ़ चली रे अपनी नाव
कागज की नैया मुन्नू खिवैया
सब चिल्लाएं हैय्या हो हैय्या
है इन खुशियों का है कोई मोल ?
बोल रे बादल बादल बोल।
बोल रे बादल बादल बोल।
कमला निखुर्पा
1 comment:
बालमन की सहज चंचलता को शब्दों में उकेरती सुंदर कविता। पढ़कर मन बचपन की यादों में सहज ही खो गया।
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