Friday, April 20, 2012
Thursday, April 19, 2012
मेरे प्यारे भैया को समर्पित...(जिन्होंने मुझे हाइकु लेखन के लिए प्रेरित किया ).
गागर छोटी
भरूं मैं तो सागर
हाइकु हो ना ?
महक उठा
मोरा माटी सा तन
फुहार हो क्या ?
तिरती जाऊं
ज्यों लहरों पे नैया
खिवैया हो क्या ?
कुछ यूँ लगा
उमंगित है मन
त्यौहार हो क्या ?
जो भी हो तुम
हो जन्मों के मीत
कह भी दो हाँ
गागर छोटी
भरूं मैं तो सागर
हाइकु हो ना ?
बहती जाए
नयनों से नदियाँ
सागर हो क्या ?
महक उठा
मोरा माटी सा तन
फुहार हो क्या ?
डूब चली मैं
नेह ज्वार उमडा
चन्दा हो क्या ?
तिरती जाऊं
ज्यों लहरों पे नैया
खिवैया हो क्या ?
तुमने छुआ
क्या से क्या बन चली
पारस हो क्या ?
कुछ यूँ लगा
उमंगित है मन
त्यौहार हो क्या ?
कौन हो तुम ?
कितने रंग तेरे
चितेरे हो क्या ?
जो भी हो तुम
हो जन्मों के मीत
कह भी दो हाँ
मैं नहीं बोली
बोल पडी कविता
छंद ही हो ना ?
Saturday, January 14, 2012
चुनावी तांका

जनता हर रोज
जागी है अब,
ले रही अंगडाई |
बचना रे भाई |
टोपी सजेगी ,
सर माथे रखेगी ,
ईमानदारों के |
भ्रष्टों के गले होगी ,
जूतों की लड़ी |

तन को मिले वस्त्र |
सर को छत,
मिल जाए जो सबको ,
फिर क्यों उठे शस्त्र ?
और अंत में ......जनता जनार्दन ! ये जान लीजिए-
ई राजनीति
का होत है बबुआ ?
किच्छौ नाही रे ...
ई पइसा का खेला
चार दिन का मेला |
Wednesday, January 11, 2012
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