Tuesday, December 30, 2014

Morning Walk

 मॉर्निग वॉक

    सुबह सुबह ताजी  हवा के झकोरों से बात करते हुए मैं हरे-भरे घास के मैदान से मिलने जा रही थी | सड़क के दोनों तरफ अमलतास और गुलमोहरों ने कलियाँ बिखेरकर रंग-बिरंगा कालीन बुना था | पंछियों की चहचहाती चुहल अलसाई भोर को झकझोर रही थी | सड़क पर मॉर्निग वॉक करने वालों की चहलकदमी शुरू हो गई है |
    वो देखो ... कमर में मोटा सा पट्टा बंधे बूढी दादी हाथ में पॉलीथिन लेकर चल रही है , थोड़ी देर में दादी की पॉलीथिन आम, जामुन  और पूजा के फूलों से भर जाएगी जब तक आम, जामुन का सीजन रहेगा, दादी के हाथ में थैला रहेगा |
 वो सामने से हरियाणा वाली दीदी आ रही हैं ... हाथ में प्लास्टर बंधा है पर मॉर्निग वॉक तो जरूरी है जी | पता है हाथ में प्लास्टर क्यों बंधा है? दरअसल ये भी जामुन चुनने के लिए भागी-भागी जा रहीं थी, अचानक ठोकर लगी और धड़ाम ... ४५ दिनों के लिए हाथ बेचारा बंधन में बंध गया| अब वो कहती फिरती हैं बहनजी लालच बुरी बला है |“
   कोई धीरे धीरे कदम घिसटता हुआ चल रहा है, कोई इतनी तेजी से लंबे-लंबे डग भर रही है, लगता है उसकी बस छूटने वाली है , ये देखो ये आ रहे हैं खिलाडी महाशय, ट्रैक सूट में सजे, स्पोर्ट्स शूज बाँधे दौड़-दौड़ कर हलकान हुए जा रहे हैं |
         मेरे कदम इन सबको देख कभी तेज तो कभी धीमे हो जाते हैं और  मेरी आँखें  ऊंची फुनगियों में चिरिया रानी को खोजती रहती हैं | रंग-बिरंगी चिरैया , कभी चंचल , कभी डरपोक चिरैया ... चहककर मिठास घोलती चिरैया ... नन्हे पंख पसार आसमान को छूती चिरैया | काश मैं भी एक चिरैया होती ..
पागल मन
छूना चाहे संसार
पंख पसार |

Tuesday, October 7, 2014

तस्वीर तुम्हारी

जब भी देखती हूँ तस्वीर तुम्हारी 

बस देखती ही रह जाती हूँ  

तस्वीरों के रंग 

बिखर बिखर जाते हैं मेरे वजूद में 

यादों  के मेघ तले, रंगों की बारिश में भीजती 

चुपके से होठों पे सज जाती है 

इन्द्रधनुषी मुस्कान |



जब भी सुनती हूँ बातें तुम्हारी 

बस सुनती ही रह जाती हूँ 

कुछ कह नहीं पाती 

शहद सी मीठी तेरी बातें 

घुल जाती है अंतर्मन में 

अनजाने ही सरगम के मधुर सुर 

गूंजने लगते है कानों में  |



जब भी मिलती हूँ तुमसे 

मिलने से पहले ही ये तन्हाई 

डर जाती है,  जाने क्यों सहम  जाती है 
  
कि मिलने के बाद बिछुडना भी है  

छुप जाती है अपनी ही परछाई की ओट में 

हाथों में लिए तस्वीर तुम्हारी ..

                                                           
                                                             

                                                    कमल













Wednesday, September 3, 2014

आज उदास है मन ..











बीता  दिवस 
बरस मास बीते 
खुशियाँ  रीती |

रस की नदी 
बही थी कलकल 
सूखने चली |



एकाकी मन 
बुनता ही रहता   
मीठे सपन |



किससे कहें ?
कसक मनवा की 
दूर अपने |


कहाँ  जा छुपी ?
अभी-अभी थी यहीं
पगली हँसी |


रोके ना रुकी 
बरसी बह चली 
सावनी झड़ी |

                                      कमला 

Saturday, August 30, 2014

हरी चूनर




हरी चूनर
पीले फूल काढता
दर्जी बसंत |