पहाड़ी नदी:कमला निखुर्पा
1
पहाड़ी नदी
है अल्हड़ किशोरी
कभी मचाए
ये धमाचौकड़ी तो
कभी करे किल्लोल।
2
पहाड़ी नदी
बहाती जीवनधारा
सींचे प्रेम से
तरु की वल्लरियाँ
वन औ’ उपवन
3
पहाड़ी नदी
है अजब पहेली
कभी डराए
हरहरा कर ये
जड़ें उखाड़ डाले …।
4
तटों से खेले
ये अक्कड़ -बक्क्ड़
छूकर भागे,
तरु को तिनके को,
आँखमिचौली खेले…।
5
आईना दिखा
बादलों को चिढ़ाए…।
कूदे पहन
मोतियों का लहंगा
झरना बन जाए…।
6
बहती चली
भोली अल्हड़ नदी
छूटे पहाड़
छूटी घाटियाँ पीछे…
सबने दी विदाई…।
7
चंचल नदी…
भूली है चपलता…
गति मंथर…
उड़ गई चूनर…
फैला पाट -आँचल …।
8
पहाड़ी नदी
पहुँची सिंधु-तट
कदम रखे
सँभल सँभल के…
थकी मीलों चलके।
9
पहाड़ी नदी
बन जाती भक्तिन
बसाए तीर्थ
तटों पर पावन
भक्त भजन गाए ।
10
दीपों से खेले
लहराकर बाँहें
कहे तारों से
आ जाओ मिलकर
खेलेंगे होड़ाहोड़ी।
11
कभी लगती
चिता जो तट पर
बिलख उठे
बहाकर अस्थियाँ
कलकल रव में
-0-
भावों के दीप
भावों के दीप
12
भावों के दीप
यूँ ही जलते रहें
मन - देहरी ,
जगमग रौशन
जीवन हो तुम्हारा
13
घिसता जाए
क्षणभंगुर तन
मन चंदन
बिखराए सुगंध
पावन है जीवन
-0-
चार तांका किसान के लिए
कड़क धूप
जलाती तन-मन
हाड़ कँपाती
छत टपक रोती।
16
कटी फ़सल
अन्न लदा ट्रकों पे
लगी बोलियाँ
किसान के हिस्से में
भूसे का ढेर बचा ।
17
प्यारा था खेत
बहा ले गया
पगलाया बादल
बस एक पल में।
1 comment:
बहुत सुन्दर रचनाएं --किसान के मन कि व्यथा मन को छू गयी ...किस किस कि तारीफ़ करूं ---बधाई हो
सींचा था पसीने से .....
जय श्री राधे
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
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