Saturday, October 15, 2011

ताँका


पहाड़ी नदी:कमला निखुर्पा
1
पहाड़ी नदी
है अल्हड़ किशोरी
कभी मचाए
ये धमाचौकड़ी  तो
कभी करे किल्लोल।
2
पहाड़ी नदी
बहाती जीवनधारा
सींचे प्रेम से
तरु की वल्लरियाँ
वन औउपवन
3
पहाड़ी नदी
है  अजब पहेली
कभी डराए
हरहरा कर ये
जड़ें उखाड़ डाले
4
तटों से खेले
ये अक्कड़ -बक्क्ड़
छूकर भागे,
तरु को तिनके को,
आँखमिचौली खेले
5
आईना दिखा
बादलों को चिढ़ाए
कूदे पहन
मोतियों का लहंगा
 झरना बन जाए
6
बहती चली
भोली अल्हड़ नदी
छूटे पहाड़
छूटी घाटियाँ पीछे
सबने दी विदाई
7
चंचल नदी
भूली है चपलता
गति  मंथर
उड़ गई चूनर
फैला पाट -आँचल
8
पहाड़ी नदी
पहुँची सिंधु-तट
कदम रखे
सँभल सँभल के
थकी मीलों चलके।
9
पहाड़ी नदी
बन जाती भक्तिन
बसाए तीर्थ
तटों पर पावन
भक्त भजन गाए ।
10
दीपों से खेले
लहराकर बाँहें
कहे तारों से
आ जाओ मिलकर
खेलेंगे होड़ाहोड़ी।
11
कभी लगती
चिता जो तट पर
बिलख उठे
बहाकर अस्थियाँ
कलकल रव में
-0-


भावों के दीप

12
भावों के दीप
यूँ ही जलते रहें
मन - देहरी ,
 जगमग  रौशन
जीवन हो तुम्हारा 
13
घिसता जाए
क्षणभंगुर तन
मन चंदन
बिखराए सुगंध
पावन है जीवन
-0-


चार तांका किसान के लिए 
14






अरे किसान
तेरे खेत हँसते
मुसकाई हैं
ये धान की बालियाँ
फ़िर तू क्यों रोया है ?



कड़क धूप
जलाती तन-मन
हाड़ कँपाती
ये बैरन सर्दी भी
छत टपक रोती।







16
कटी फ़सल
अन्न लदा ट्रकों पे
लगी बोलियाँ
किसान के हिस्से में
भूसे का ढेर बचा 







17
प्यारा था खेत
सींचा था पसीने ने
बहा ले गया
पगलाया बादल
बस एक पल में।

1 comment:

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

बहुत सुन्दर रचनाएं --किसान के मन कि व्यथा मन को छू गयी ...किस किस कि तारीफ़ करूं ---बधाई हो
सींचा था पसीने से .....
जय श्री राधे
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण