Sunday, March 24, 2013


आई है होली


फागुन संग इतरा के आई है होली
सर र र र चुनरी लहराई  रे होली
सरसों भी शरमा के झुक झुक जाए
खिलखिला रही वो देखो टेसू की डाली |
फागुन संग इतरा के आई रे  होली |


अमुआ की डाली पे फुदक-फुदक
कानों में कुहुक गीत गाए है होली |
                  इंद्र धनुष उतरा गगन से  धरा पे
सतरंगी झूले पे झूल रही  होली |
फागुन संग इतरा के आई रे  होली |

खन खन खनकी गोरे हाथों की चूडियाँ
पिचकारी में रंग भर लाई रे होली |
अखियाँ अबीर,  गाल हुए हैं गुलाल आज
भंग की तरंग संग लाई है होली |
फागुन संग इतरा के आई है होली |










गलियाँ चौबारे बने ब्रज – बरसाने
घर से निकल चले कुंवर कन्हाई
ढोलक की थाप सुन गूंजे मृदंग धुन   
संग चली गीतों की धुन अलबेली |
फागुन संग इतरा के आई रे होली |
इंद्र धनुष उतरा गगन से  धरा पे
सतरंगी झूले पे झूल रही  होली |

 कमला निखुर्पा



Monday, December 10, 2012

बूँदों की व्यथा


कमला निखुर्पा
(प्राचार्या केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक-2 ,कृभको सूरत )
सपनीली आँखों में छुपी थी कुछ नन्हीं बूँदें,
पलकों के किवाड़ की ओट से झाँकती नन्हीं बूँदें।
उमड़ा भावों का कुछ ऐसा ज्वार
बूँदें बहने को बेकरार ।
पर दहलीज पे ठिठक गए कदम
क्योंकि-
सामने राह रोके खड़ी थी, नाक की ऊँची दीवार,
देती चेतावनी बार-बार,
देखो बाहर ना निकलना,
नहीं तो-
वापस घर में घुसने ना पाओगी।
जो कहीं बाहर निकल गयीं तुम तो,
धूल में मिल जाओगी।
फ़िर कभी नजर ना आओगी।

देख बूँदों की व्यथा
कुछ कहने को होंठ कसमसाए,
मगर कुछ भी कह ना पाए।
क्योंकि-
सामने राह रोके खड़ी थी, हाथ की चौड़ी हथेली,
करती होशियार!! खबरदार!!
भावों में कभी ना बहना,
चिकने गालों पे कभी ना फिसलना।
वर्ना इस तरह पोंछ दी जाओगी
फ़िर कभी नजर ना आओगी।

देख बूँदों के ठिठके कदम
भरी आंखों ने भारी मन से,
बंद कर दिए पलकों के किवाड़,

बूँदें बह ना सकीं
कुछ भी कह ना सकीं……………।
-0-

Friday, April 20, 2012

ये दिल तेरा (ताँका)


ये दिल तेरा (ताँका)

रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
ये दिल तेरा
है गहरा सागर
जाना हमने
भर पाए हम तो
इक छोटी गागर ।
-0-

Thursday, April 19, 2012

मेरे प्यारे भैया को समर्पित...(जिन्होंने मुझे हाइकु लेखन के लिए प्रेरित किया ).


गागर छोटी 
भरूं मैं तो सागर 
हाइकु हो ना ?


बहती जाए 
नयनों से नदियाँ 
सागर हो क्या ?


महक उठा
मोरा  माटी सा तन 
फुहार हो क्या ?


डूब चली मैं 
नेह ज्वार उमडा
चन्दा हो क्या ?


तिरती जाऊं 
ज्यों लहरों पे नैया 
खिवैया हो  क्या ?


तुमने छुआ 
क्या से क्या बन चली 
पारस हो क्या ?


कुछ यूँ लगा 
उमंगित है मन 
त्यौहार हो क्या ?


कौन हो तुम ?
कितने रंग तेरे 
चितेरे हो क्या ?


जो भी हो तुम
हो जन्मों के मीत 
कह भी दो हाँ 

मैं नहीं बोली 
बोल पडी कविता 
छंद ही हो ना ?