Friday, July 12, 2013

सुनहरी सुबह


सुनहरी सुबह
पंछियों ने चहककर कहा
उठो, जागो, प्यारे बच्चो कि तुम्हे स्कूल बुला रहा है |

चुपके से ठंडी हवा ने कपोलों को छूकर कहा
खिड़कियाँ खोलो जरा, देखो तुम्हे नजारा बुला रहा है
वो देखो बादलों की रजाई में दुबका सूरज भी कुनमुनाकर जाग उठा है
तुम भी आलस छोडो प्यारे बच्चो कि तुम्हे स्कूल बुला रहा है |

पलकें उठाकर तो देखो अपनी बगिया को
रंग बिरंगी यूनीफार्म में सजकर तितलियाँ भी पराग लेने चल पड़ी हैं
तुम भी चल पड़ो बस्ता लेकर कि तुम्हे स्कूल बुला रहा है |

पन्ने फडफडाकर कब से तुम्हे जगा रही है तुम्हारी प्यारी कॉपी
कह रही, संग चलूंगी मैं भी, छोड़ न देना मुझे घर पे अकेली |
अरे रे ..मचल उठी है नन्हीं कलम भी , हाथों में आने को बेकल
लुढ़क ना जाए रूठकर उसे थाम लो तुम
लिख डालो नई इबारत कि तुम्हे स्कूल बुला रहा है |

आओ कि बाहें फैलाकर खड़ा है विद्यालय प्रांगण
हंसा दो अपनी खिलखिलाहट से कि गूंजे दिशाएं
आओ कि पेड़ों ने तुम्हारी राहों में फूल बिखराए है
नन्हे हाथों से तुमने रोपे थे जो पौधे
प्यास उनकी बुझा दो कि तुम्हे स्कूल बुला रहा है |

देखो तो ज़रा , द्वार पे खड़ा सुरक्षा प्रहरी
तुम्हारे स्वागत में, मूंछों में मुस्कराया है |
तोतली मीठी बोली में काका सुनकर मन उसका हरषाया है |
बाँध लो सबको पावन रिश्तों में कि तुम्हे स्कूल बुला रहा है |

आशीष तुम्हे देने को कब से खड़ी माँ शारदा वागेश्वरी
वीणा के तारों को सुर दो कि तुम्हे स्कूल बुला रहा है |
नन्ही उँगलियों से थामकर कलम को
चल पड़ो सृजन पथ पर कि तुम्हे स्कूल बुला रहा है |

चले आओ प्यारे बच्चो कि तुम्हे स्कूल बुला रहा है |

Sunday, July 7, 2013

भीगे हाइकु

भरी भरी थी 
बदरा की अँखियाँ 
बही नदियाँ |

छप से गिरी 
चपला गगन से 
टूटी बिखरी |

छलक उठा 
सरवर का जाम 
नशीली धरा |

इक कोंपल 
नन्हीं सी  दो  कलियाँ 
उगा हाइकु |

Tuesday, May 21, 2013

मैं नलिनी ,कोमल कमल

मैं नलिनी
मैं नलिनी,
जलसुता
सरोवर की गोद में पली मैं
सूरज की किरणों में नहाकर निकली मैं
अपनी नाजुक हथेलियों में, ओस के मोतियों को मैंने समेटा
अपनी मृणाल बाँहों को फ़ैला, लहरों से की है अठखेलियाँ

उषा की लालिमा पा अरविंद बन गई मैं
धवल चंद्रकिरणों का शृंगार कर पुंडरीक कहलाई मैं
मेरे उर की सुरभि से सुरभित संसार हुआ
मेरे रूप-रंग का भँवरों ने गीत गाया
गुन-गुन का गुंजार सुन लजाई मैं
मेरा जीवन
बना सुंदर उपवन

मैं कोमल कमल
कहीं आसीन हो कमल पर, धन बरसाए कमला
कहीं नीलकमलों से श्रीराम करें शक्तिपूजा
सप्तसुर वीणा के सुनाए श्वेत पद्मासना शारदा
धन्य मेरा जीवन
बना दिव्य पूजन

मैं नीरजा मैं वारिजा
मेरे अरविंद आनन ने ममता का आँचल भिगोया
मेरे कमल नयनों ने जग का मन मोहा
मेरे चरणकमलों में भक्त हृदय नत हुआ
कवियों की लेखनी ने उपमान मुझे बनाया है
वाङ्मय सारा, देखो कमलमय हुआ है
पूजन में मैं ,वन्दन में मै
चिन्तन में मैं ,लेखन में मैं
जीवनके हर स्पन्दन में मैं,

प्रतीक बनी पावनता की
सत्यता की ,सुंदरता की
हर्ष की ,पावन स्पर्श की
सबके बीच में रहकर निर्लिप्तता की
पंक में रहकर भी मैंने तब, पावन प्रेम पाया
राजनीति के ध्वज पर चढकर, अब मैंने सब कुछ गवाँया
अब कभी किसी मतवाले हाथी के, पैरों तले मैं रौंदी जाती हूँ
तो कभी किसी पंजे की ताकत से, जड़ों से उखाड़ी जाती हूँ।

मैं अंबुजा पंकजा
आज अपने वृंत से विलग हूँ
सुरभि उड़ चुकी है
पंक में धँस रही हूँ।
मेरा जीवन
बना करुण क्रंदन



 कमला निखुर्पा
२१ जून २०१०
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Sunday, May 12, 2013

पहाडी नार



मैं पहाड़न
घास मेरी सहेली
पेड़ों से प्यार |

वो बचपन
वो माटी का आँगन
भुलाऊं कैसे
दादी की गुनगुन ?

कोंदों की रोटी
नमक संग खाऊं
वो भी ना मिले
तो मैं भूखी सो जाऊं |

खेत जंगल
निराली पाठशाला |
मेरा तो बस्ता  
घास का भारी पूला |
मेरी कलम
कुदाल औ दराती |

दिन भर भटकूँ
फिसलूं गिरूँ
चोट खाके  मुस्काऊं
उफ़ ना करूं


नंगे पाँव ही
चढनी है चढाई,
आंसू को पोछ
लड़नी है लड़ाई |

सूने है खेत
वीरान खलिहान |
भूखी गैया ने  
खड़े किए हैं कान |
पत्थर सा कठोर
है भाग्य मेरा ,
फूलों से भी कोमल
है गीत मेरा |

हुई बड़ी मैं
नजरों में गड़ी मैं
पलकें ना उठाऊं |
खुद को छुपा
आँचल ना गिराऊं|

मेंहदी रचे
नाजुक गोरे  हाथ|
पराई हुई
बाबुल की भी गली |

हुई विदा मैं
बाबा गंगा नहाए
आंसू में भीगी
मेरी माँ दुखियारी |

तीज त्यौहार
आए  बुलाने भाई
भाई को देख
कितना  हरषाई!!
दुखड़ा भूल
अखियाँ  मुसकाई

एक पल में
बस एक पल में
बचपन जी आई |

कमला निखुर्पा