Saturday, October 24, 2009

7-मन जम गया: कमला निखुर्पा


कमला निखुर्पा

फिर आया बसंत,

कोयल कूकी, कलियाँ खिल गई

पर मन ना खिला...

चली पुरवाई, छाई घटाएँ

रिमझिम बूंदें बरस गईं

तन भीग गया पर मन ना भीगा....

हुई साँझ, चाँदनी मुसकराई

तारे खिलखिलाए

पपीहे ने रोकर पुकारा पी कहाँ...पी कहाँ...

पर मन ना रोया.....

मन जम गया कहीं वक्त थम गया

हिलोर उठती नहीं

ये क्या हो गया ?

शायद यही कटु सत्य है

यही एक तथ्य है

मशीनी युग का मानव आज मशीन बन गया

तभी तो...

फूलों का खिलना

कोयल का कूकना

बूँदों का बरसना

जस्ट रुटीन बन गया

मानव मशीन बन गया।

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