Wednesday, September 15, 2010

हाइकु


:कमला निखुर्पा 
1-
मन के मेघ
उमड़े है अपार
नेह बौछार।






2-
छलक उठे
दोनों नैनों के ताल
मन बेहाल।





 

3-
छूने किनारा
चली भाव-लहर

भीगा अन्तर

3 comments:

सहज साहित्य said...

छलक उठे
दोनों नैनों के ताल
मन बेहाल।
-इस हाइकु ने तो मन को ही छू लियां नैनों के ताल की उपमान- योजना बेहत खूबसूरत है और कम से कम शब्दों मेंसुन्दर बिम्ब प्रस्तुत कर दिया है । यही हाइकु की सामर्थ्य है।

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...

हुज़ूर,
मैंने बहुत हाइकु पढ़े हैं अब तक...लेकिन बहुत कम ने ‘बहुत अधिक’ प्रभावित किया। बाढ़ के चलते काफी खरपतवार भी बहकर चला आया है हाइकु-प्रदेश में।

आज अर्से के बाद किसी की हाइकु-रचनाएँ मन में गहरे उतर सकीं। इन्हें मैं हाइकु नहीं, बल्कि आपके घनीभूत चिंतन के प्रभावशाली कैप्स्यूल्ज़ कहूँगा जो भीतर पहुँचते ही अपना असर दिखा जाते हैं।

मुग्ध हूँ आपके इस सृजन पर...बधाई!

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...

हुज़ूर,
मैंने बहुत हाइकु पढ़े हैं अब तक...लेकिन बहुत कम ने ‘बहुत अधिक’ प्रभावित किया। बाढ़ के चलते काफी खरपतवार भी बहकर चला आया है हाइकु-प्रदेश में।

आज अर्से के बाद किसी की हाइकु-रचनाएँ मन में गहरे उतर सकीं। इन्हें मैं हाइकु नहीं, बल्कि आपके घनीभूत चिंतन के प्रभावशाली कैप्स्यूल्ज़ कहूँगा जो भीतर पहुँचते ही अपना असर दिखा जाते हैं।

मुग्ध हूँ आपके इस सृजन पर...बधाई!