Friday, November 19, 2010

आसरा

आसरा

इस कदर गरज के बरसे हैं, बेमौसम ये बादल
ढहने लगा है आशियां मेरा ।
आसरा तलाशे निगाह ए बैचेन, सर छुपाने को
अपने घुटनों से बेहतर कोई आसरा न मिला ।

कमला 19.11.2010

1 comment:

सहज साहित्य said...

एकदम नई कल्पना , नई सोच । हारकर आदमी अपने घुटनों में ही आसरा ढूँढ़ता है । बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति ! प्रशंसा के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।