सीने में दबी हैं सिसकियाँ ..
अलविदा कहूँ तो फूट पड़ेंगी .
जीना बहुत मुश्किल है तुम्हारे बिन
फिर भी जीना तो पड़ेगा ना हमें ..
अब तक थाम कर चलती रही उंगली तुम्हारी
अब अकेले ही मंजिल तक पहुंचना है हमें
डरती हूँ मैं
घबराकर सहम जाती हूँ ...
कि इस भीड़ भरे शहर में खो न जाऊं मैं ...
टूट कर बिखर न जाए मेरी शख्सियत ...
खुद को ढूंढती न रह जाऊं मैं ..
कुछ भी हो ..
चलना तो पडेगा ही ना ?
अकेले दूर तलक .
वादा करती हूँ तुमसे मैं..
चलती रहूंगी
रुकूंगी नहीं मैं .
चाहे गिरुं खाकर ठोकर ..
बार-बार ..उठूंगी
दर्द अनेक सहूंगी मैं ..
ये मुश्किल तो है ..
पर नामुमकिन नहीं ..
क्योंकि नेह भरा जो दीपक तुम जला गए हो मन की देहरी पर
दिखाएंगी हरदम राह मुझे
अंधियारी अमावस में भी हर कदम पर एहसास होगा
तुम्हारी चाहत की उजास का...
7 comments:
कमला जी 'अलविदा कैसे कहूँ ' कविता में एक झील है मीलो,न तक फैली हुई अतल जल से भरी । इसकी गहराई कौन नाप सकेगा ! आपके गहन भाव हृदय को बहुत गहरे तक डूबो देते हैं । यही जीवन है न ! ये पंक्तिया मन पर ऐसी छाप छोड़ती हैं जैसे किसी ने दिल पर मेंहन्दी रची दो हथेलियाँ छाप दी हों बहुत साधुवाद और आपकी ये मर्मस्पर्शी पंक्तियां-
वादा करती हूँ तुमसे मैं..
चलती रहूंगी
रुकूंगी नहीं मैं .
चाहे गिरुं खाकर ठोकर ..
बार-बार ..उठूंगी
दर्द अनेक सहूंगी मैं ..
ये मुश्किल तो है ..
पर नामुमकिन नहीं ..
क्योंकि नेह भरा जो दीपक तुम जला गए हो मन की देहरी पर
दिखाएंगी हरदम राह मुझे
अंधियारी अमावस में भी हर कदम पर एहसास होगा
तुम्हारी चाहत की उजास का...
कमला जी ,
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ |
क्या कहूँ.....मैं तो पढ़ती डूबती ही चली गई ......
मर्मस्पर्शी कविता ....अलविदा कैसे कहूँ ?
सुन्दर भावों से सजी दिल को छूने वाली है हर पंक्ति .....गहन भाव में डूबा मन न जाने यह कविता पढ़ता हुआ कहाँ विलीन हो जाता है |
यह पंक्तियाँ तो सीधा दिल में उतर गईं ....
वादा करती हूँ तुमसे मैं..
चलती रहूंगीरुकूंगी नहीं मैं .
चाहे गिरुं खाकर ठोकर ..
बार-बार ..उठूंगी
दर्द अनेक सहूंगी मैं ..
ये मुश्किल तो है ..
पर नामुमकिन नहीं ..
क्योंकि....
नेह भरा जो दीपक
तुम जला गए हो
मन की देहरी पर
दिखाएंगी हरदम
राह मुझे
अंधियारी अमावस में भी
हर कदम पर एहसास होगा
तुम्हारी चाहत की उजास का...
हरदीप
Bahut hrdysaparshi rachna hai ...hardik badhai...
बहुत ही मार्मिक कविता है|
जीवन चलने का नाम है|
जीवन ठोकर खाकर सँभलने का नाम है|
जीवन आशा का दीप जलाए रखने का नाम है|
जीवन संघर्ष है और समाधान भी है|
ये सारी बातें आपकी कविता में मुखरित हो उठी हैं|जल्द ही आपके हाइकुऔं पर आधारित हाइगा
हिन्दी-हाइगा ब्लॉग पर होंगे|
dukh ke sath vishvash aur himmat bhi hai aapki kavita me bahut hi sunder bhav aur darad ka bahut hi sunder sangam hai.
badhai
rachana
ये मुश्किल तो है ..
पर नामुमकिन नहीं ..
क्योंकि नेह भरा जो दीपक तुम जला गए हो मन की देहरी पर
दिखाएंगी हरदम राह मुझे
अंधियारी अमावस में भी हर कदम पर एहसास होगा
तुम्हारी चाहत की उजास का...
कमला जी बहुत ही सुन्दर मन को छू लेने वाली कविता... ये तो सच है.. जीना तो पड़ता ही है... साथ में या फ़िर बिना साथी के.. लेकिन यादों के उजाले सदा साथ रहते हैं उजास देने के लिए....इसी का नाम ज़िंदगी है
सादर
मंजु
peeda, saahas aur aasha se srijit komal bhaav, shubhkaamnaayen.
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