सीने में दबी हैं सिसकियाँ ..
अलविदा कहूँ तो फूट पड़ेंगी .
जीना बहुत मुश्किल है तुम्हारे बिन
फिर भी जीना तो पड़ेगा ना हमें ..
अब तक थाम कर चलती रही उंगली तुम्हारी
अब अकेले ही मंजिल तक पहुंचना है हमें
डरती हूँ मैं
घबराकर सहम जाती हूँ ...
कि इस भीड़ भरे शहर में खो न जाऊं मैं ...
टूट कर बिखर न जाए मेरी शख्सियत ...
खुद को ढूंढती न रह जाऊं मैं ..
कुछ भी हो ..
चलना तो पडेगा ही ना ?
अकेले दूर तलक .
वादा करती हूँ तुमसे मैं..
चलती रहूंगी
रुकूंगी नहीं मैं .
चाहे गिरुं खाकर ठोकर ..
बार-बार ..उठूंगी
दर्द अनेक सहूंगी मैं ..
ये मुश्किल तो है ..
पर नामुमकिन नहीं ..
क्योंकि नेह भरा जो दीपक तुम जला गए हो मन की देहरी पर
दिखाएंगी हरदम राह मुझे
अंधियारी अमावस में भी हर कदम पर एहसास होगा
तुम्हारी चाहत की उजास का...