Friday, November 19, 2010
आसरा
आसरा
इस कदर गरज के बरसे हैं, बेमौसम ये बादल
ढहने लगा है आशियां मेरा ।
आसरा तलाशे निगाह ए बैचेन, सर छुपाने को
अपने घुटनों से बेहतर कोई आसरा न मिला ।
कमला 19.11.2010
इस कदर गरज के बरसे हैं, बेमौसम ये बादल
ढहने लगा है आशियां मेरा ।
आसरा तलाशे निगाह ए बैचेन, सर छुपाने को
अपने घुटनों से बेहतर कोई आसरा न मिला ।
कमला 19.11.2010
डोकराजी को सलाम
आँखों में लरजता प्यार है।
झुर्रियों से भरा चेहरा तेरा
कहता अनुभव अपार है।
तेरे उन्मुक्त हँसी के ठहाके
हर आँगन की शान है।
ये वृद्ध-बुजुर्ग नमन तुम्हें
तू भारत की शान है।
बडी–बडी नुकीली मूँछों में
छुपी मीठी मुसकान है।
बटुआ तेरा खाली–खाली सा
पर मन सोने की खान है।
ये वृद्ध बुजुर्ग नमन तुम्हें
तू भारत की शान है।
अनजाना है गाँव तेरा
लगता है मुझको अपना- सा।
ये लहराते हरे खेत
लगता है ये इक सपना –सा ।
मरुभूमि सिंचित तेरे पसीने से
तुझको मेरा प्रणाम है।
ये वृद्ध बुजुर्ग नमन तुम्हें
तू भारत की शान है।
शायद तुझमें ही छुपा हुआ
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान है।
तेरे गाँव की मिट्टी से ही
मेरा भारत महान है।
--------.
डोकरा= बूढ़ा
द्वारा- कमला
Wednesday, September 15, 2010
हाइकु
:कमला निखुर्पा
1-
मन के मेघ
उमड़े है अपार
नेह बौछार।
उमड़े है अपार
नेह बौछार।
2-
छलक उठे
दोनों नैनों के ताल
मन बेहाल।
दोनों नैनों के ताल
मन बेहाल।
3-
छूने किनारा
चली भाव-लहर
चली भाव-लहर
भीगा अन्तर
Sunday, August 22, 2010
कुछ कहना चाहूँगी मै
सुनो .....
कुछ कहना चाहूँगी मै
गुन्जनरत भंवरों से
बौराई मंजरियों से
महकती कलियों से
बिखर जाए मधु पराग कण
विस्तृत धरा में
नील अंबर में
सतरंगी इन्द्रधनुषी आभा में
खिल उठे हर चेहरा हर दृष्टि
मधुमय हो जाए यह सृष्टि
पुष्पित अरविन्द की तरह ........
कुछ कहना चाहूंगी मैं
घिरती घटाओं से
सावन की फुहारों से
गूँज उठे स्वर लहरी मेरी
व्याकुल पपीहे की तरह
बरसे रसधार प्रेम फुहार
चहुँ दिशि चहुँ ओर
बारिश की तरह .....
कुछ कहना चाहूँगी मै
गुन्जनरत भंवरों से
बौराई मंजरियों से
महकती कलियों से
बिखर जाए मधु पराग कण
विस्तृत धरा में
नील अंबर में
सतरंगी इन्द्रधनुषी आभा में
खिल उठे हर चेहरा हर दृष्टि
मधुमय हो जाए यह सृष्टि
पुष्पित अरविन्द की तरह ........
कुछ कहना चाहूंगी मैं
घिरती घटाओं से
सावन की फुहारों से
गूँज उठे स्वर लहरी मेरी
व्याकुल पपीहे की तरह
बरसे रसधार प्रेम फुहार
चहुँ दिशि चहुँ ओर
बारिश की तरह .....
धरती की पुकार :
-कमला निखुर्पा
तपती धरती कहती अंबर के
कानों में बन पपीहे की पुकार।
पीहू पीहू ओ प्रियतम मेरे!
बरसाओ अमृत रसधार।
सुनकर धरा की करुण पुकार
घिर आए श्यामल मेघ गगन में,
बाहें फैलाए क्षितिज के पार।
उमड़ घुमड़ घनघोर, मचाकर रौरव शोर
बरसाकर बूँदों की रिमझिम फुहार ।
अंबर नटखट दूर क्षितिज से,
निहारे प्रिया को बारम्बार।
जल बूँदों के स्पर्श से सिहर उठी यूँ वसुधा।
पुलकित तन , नवअंकुरित हरित तृण
रोमावलि से उठे लहलहा।
फिर बह चली सुगंधित मंद बयार
तो धरा का रक्तिम किसलय अंचल लहराया।
धानी चूनर ओढ़कर क्यों
चंचल मन फिर से मुसकाया?
झील की नीली आंखों से,
एकटक निहार प्रियतम अंबर को
दूर गगन में मेघ देख क्यों
व्याकुल मन फिर शरमाया ?
सद्यस्नाता धरा ने ली,
तृप्ति भरी इक गहरी साँस।
महक उठी हवा भी कुछ,
कुसुमित हुआ जीवन प्रभात
सुरभित हुई दिशाएँ भी और
पल्लवित नवजीवन की आस।
कमला निखुर्पा
स्नातकोत्तर शिक्षिका (हिन्दी),
केन्द्रीय विद्यालय वन अनुसंधान संस्थान
देहरादून (उत्तराखंड
Friday, August 20, 2010
सुख-दुख
सुख तो सौरभ है दो दिन का ,
दुख दो पल की धूल है ।
इनको अपनी नियति समझना
ही जीवन की भूल है ।
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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